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5th September Review : 5 सप्टेंबर फिल्म का रिव्हीव 

5th September Review : 5 सप्टेंबर फिल्म का रिव्हीव 

 

FilmiSurvey Review – “5th September” (2025) | फुटबॉल मैच से इज़्ज़त का गोल, लेकिन फिल्म ख़ुद गोल हो गई! 

 

भाई लोगों, कॉलेज में बैठे-बैठे सोचा था कोई ऐसी फिल्म देखूं जिसमें कुछ motivation हो, teachers को लेकर थोड़ा respect वाला vibe हो, और थोड़ा nostalgic feel भी आ जाए। तो जब “5th September” का नाम सुना, तो लगा – चलो यार, टीचर्स डे वाली फिल्म है, कुछ तो सीखने को मिलेगा।

लेकिन फिल्म देखकर ऐसा लगा जैसे director ने भी किसी स्कूल assembly में inspiration वाली speech सुनकर सीधा कैमरा उठाकर फिल्म बना दी हो – और वो भी बिना स्क्रिप्ट के।

कहानी – मैदान में लड़ाई, मगर स्क्रीन पर बोरियत

फिल्म की कहानी एक स्कूल के annual Teacher’s Day football match के इर्द-गिर्द घूमती है, जहाँ हर साल students और teachers के बीच एक symbolic match होता है।
Students – ज़ाहिर सी बात है – full energy में, जोश में, और confidence में लबालब।
Teachers – थके हारे, कुछ खुद से हारे हुए, कुछ बस औपचारिकता निभा रहे।

लेकिन इसी group में एक ऐसा teacher भी है जो हार मानने वालों में से नहीं है। वो believe करता है कि टीचर्स भी कुछ कर सकते हैं – और वही मैच को turning point बना सकता है।

मतलब मोटी बात ये है: फुटबॉल के ज़रिए self-respect और teachers की value की बात हो रही है।

सुनने में ये idea बहुत अच्छा लगता है… लेकिन जब ये idea screen पर आता है, तो script और direction दोनों ने मिलकर इसे पूरी तरह से धराशायी कर दिया।

 

Screenplay और Direction – ये फिल्म किसी टेलीविज़न सीरियल से भी फीकी लगती है

Kaviraj Singh, Anuradha Pundeer Malla और Kunal Shamshere Malla ने मिलकर इसकी कहानी और screenplay लिखा है – और frankly कहूं तो ऐसा लगता है कि इन्होंने कहानी नहीं, PTM में बोले जाने वाले भाषण का विस्तार कर दिया है।

फिल्म में भाव है, लेकिन execution एकदम ठंडा है।

Repetition का overdose है – मतलब एक बार समझ में आ गया कि teachers undervalued हैं, मगर बार-बार वही दिखाकर ज़बरदस्ती sympathy लेने की कोशिश की गई है।

Dialogues इतने routine हैं कि सुनते हुए लग रहा था जैसे कोई WhatsApp forward सुन रहे हों।

Kunal Shamshere Malla ने direction भी किया है – और वो भी फिल्म में हैं, तो शायद इसी चक्कर में कैमरा भी confused हो गया कि focus कहाँ करे।

एक्टिंग – कुछ sincere कोशिशें, लेकिन कोई बहुत बड़ा impact नहीं

Sanjay Mishra हमेशा की तरह ईमानदारी से एक्ट करते हैं। वो teacher के role में थोड़े frustrated लेकिन hopeful लगे।

Brijendra Kala भी फिल्म में sincerity लाते हैं – उनका expression और body language role से match करता है।

Victor Banerjee थोड़ा average रहे – कुछ scenes में लगे कि बस डायलॉग पढ़ रहे हैं।

Kavin Dave और Atul Srivastava ने ठीक-ठाक काम किया है – जैसे वो अपने पुराने TV roles में करते थे।

Kunal Shamshere Malla खुद भी फिल्म में हैं, लेकिन उनका performance उतना natural नहीं लगता – थोड़े forced से लगते हैं।

बाकी कलाकार – Kiran Dubey, Sarika Singh, Gayatri Bhargavi वगैरह – सब passable हैं। कोई भी scene-stealer नहीं।

 

 

म्यूज़िक और टेक्निकल पार्ट – और भी disappointment

फिल्म का music खुद Kunal Shamshere Malla और Vickey Prasad ने compose किया है। लेकिन frankly, एक भी गाना याद नहीं रहता। Background में चल रहा है बस, कोई feel नहीं।

Lyrics भी बस OK टाइप के हैं – ना दिल को छूते हैं, ना ज़हन में बसते हैं।

Choreography – functional है। एक-दो motivational montage में थोड़ा जोश भरने की कोशिश की गई, लेकिन वो भी editing से कट कर गया लगता है।

Cinematography (Tobin Thomas) dull है – ना scenes visually attractive हैं, ना frames अच्छे लगते हैं।

Action और stunts (Sheikh Hanan) – मैच वाले सीन भी excitement से खाली हैं। ऐसा लगता है जैसे बच्चों की practice चल रही है, मैच नहीं।

Editing (Malavika V.N.) – बहुत ही loose है। कई सीन ऐसे लगते हैं जो 10 मिनट पहले भी खत्म हो सकते थे।

 

बॉक्स ऑफिस की हालत – Classroom खाली, और attendance बहुत कम

फिल्म 18 जुलाई 2025 को release हुई Bombay के Glamour theatre में – और वो भी सिर्फ 1 शो daily!

Publicity almost zero थी – शायद makers को भी अंदाज़ा था कि audience ज्यादा interest नहीं दिखाएगी।

और जैसा अंदाज़ा था, opening dull ही नहीं, miserable थी – और ऐसा पूरे इंडिया में हुआ।

 

 

Final Verdict – message अच्छा, execution कच्चा

“5th September” एक अच्छी सोच के साथ आई थी – teachers deserve respect, उन्हें सिर्फ़ पढ़ाने की मशीन मत समझो।
लेकिन उस सोच को screen पर bring करने के लिए जिस emotional और cinematic weight की ज़रूरत होती है – वो इस फिल्म में बिल्कुल missing है।

फिल्म ना तो inspire करती है, ना entertain – और ना ही किसी खास emotion से connect कर पाती है।

ये फिल्म उस class की तरह है जिसमें syllabus भी है, blackboard भी, teacher भी खड़ा है – मगर student सो रहे हैं।

 

हमारी तरफ से rating:

Story Concept – 6/10

Screenplay – 3/10

Direction – 2/10

Acting – 5/10

Music – 3/10

Overall Rating: 4/10 – सिर्फ अच्छा message काफी नहीं होता, उसे अच्छे तरीके से पेश भी करना पड़ता है।

 

अंत में एक बात – जो सीखा, वो बताया

अगर आपको भी लगता है कि फिल्म honest होनी चाहिए – चाहे अच्छी हो या बुरी, तो FilmiSurvey.com को subscribe करो, bookmark करो, और हर हफ्ते वापस आना मत भूलो।

हम review करते हैं दिल से – जैसे कोई दोस्त आपको बोल रहा हो – “भाई, ये देखनी चाहिए या नहीं।”

 

अगली बार फिर मिलेंगे एक और नई फिल्म की honesty के साथ!
तब तक popcorn संभालो और mind open रखो!

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