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Jitraab(Marathi) Film Review Hindi! जित्राब फिल्म का हिंदी रिव्हीव 

Jitraab(Marathi) Film Review Hindi! जित्राब फिल्म का हिंदी रिव्हीव 

 

फिल्म रिव्यू: “जित्राब” — एक गाय, एक किसान और एक बेरुखा समाज

Jitraab Review

भाई लोग, आज एक ऐसी मराठी फिल्म की बात करने वाला हूँ जो सुनने में तो बड़ी सोच वाली लगती है, लेकिन देखने के बाद थोड़ा मन निराश हो गया। नाम है — “जित्राब”, और इसे बनाया है Shree Ganesh Marketing And Films और Taneira Films ने।

अब देखो, गाय हमारे समाज में कितनी पूजनीय मानी जाती है, है ना? मंदिर में घंटा बजा लो, घर में पूजा रख लो या फिर WhatsApp पर ज्ञान की पोस्ट देख लो — हर जगह गाय का सम्मान देखने को मिलता है। लेकिन यही समाज जब एक किसान को गाय पालते हुए संघर्ष करते देखता है, तो आंखें मूंद लेता है। यही दोहरापन दिखाने की कोशिश करती है ये फिल्म, पर अफसोस, अच्छी सोच को उतना दमदार तरीके से पेश नहीं कर पाई।

 

 कहानी में क्या है?

तो कहानी कुछ यूं है — एक आदमी की मां मरने से पहले ये आखिरी ख्वाहिश जताती है कि उनकी प्यारी गाय को किसी ब्राह्मण को दान में दे दिया जाए। बेटा मां की बात मानकर एक ब्राह्मण को गाय देता है, लेकिन कुछ दिन बाद ब्राह्मण साहब गाय को लौटा देते हैं क्योंकि अब वो उनके किसी काम की नहीं रही।

अब बेचारा बेटा इस गाय को बेचना चाहता है, लेकिन पूरा समाज मुंह फेर लेता है। कोई खरीदार नहीं मिलता, और यहीं से शुरू होता है उस किसान का असली संघर्ष।

क्या वो गाय को बेच पाएगा? क्या समाज जागेगा? या फिर सब ऐसे ही चलता रहेगा? इन सवालों के जवाब फिल्म में मिलते हैं… लेकिन वो भी एक बोरियत के साथ।

 

 स्क्रिप्ट और स्क्रीनप्ले: मज़बूत सोच, लेकिन फीकी पकवान

फिल्म की कहानी लिखी है Arvind Jagtap ने। सोच में दम था, लेकिन भाई स्क्रीनप्ले इतना धीमा और रिपिटेटिव है कि सीट पर बैठना मुश्किल हो गया। जब तक कुछ इमोशनल पकड़ बनती, तब तक वही बातें दोहराई जाती रहीं।

डायलॉग्स भी बस औसत हैं — न कुछ चुभते हैं, न कुछ दिल को छूते हैं। मतलब जैसे क्लासरूम में कोई दोस्त प्रजेंटेशन दे रहा हो लेकिन खुद भी बोर हो गया हो।

 

 अभिनय: कुछ अच्छे, कुछ बस जैसे-तैसे

Suhas Palshikar ठीक-ठाक लगे, कोई खास इंप्रेशन नहीं छोड़ा।

Bharat Ganeshpure का काम ठीक था। वैसे उन्हें कॉमेडी में ज्यादा देखा है, पर यहां उन्होंने सीरियस रोल को निभाने की कोशिश की।

Shivali Parab और Parth Bhalerao बस चल गए।

लेकिन Rohit Mane ने काफी अच्छा काम किया — उनकी आंखों में दर्द दिखता है।

बाकी सारे कलाकारों ने भी एवरेज परफॉर्मेंस दी। मतलब न बुरा, न यादगार।

 

Jitraab Review

 डायरेक्शन और टेक्निकल चीज़ें: क्लास ऑडियंस के लिए ही बनी फिल्म

डायरेक्टर Tanaji M. Ghadge ने एकदम सिंपल तरीके से फिल्म बनाई है। कोई एक्सपेरिमेंट नहीं, कोई सरप्राइज़ नहीं। बस कहानी को सीधा-सपाट तरीके से पेश किया गया है, जो शायद सिर्फ क्लास ऑडियंस को ही अपील करे।

Music by Devdutta Manisha Baji — एकदम साधारण। ना कोई दिल को छूने वाला गाना, ना कोई बीट पकड़ में आई।

Lyrics by Mangesh Kangane — मतलब बस काम चला लिया गया है।

Background Score by Aditya Bedekar — ठीक-ठाक।

Cinematography by Madhu Gowda and Prathamesh Kulkarni — कुछ सीन अच्छे लगे, लेकिन लोकेशन और शॉट्स में कुछ नया नहीं था।

Art Direction by Anukul Sutar — फिर से वही बात, औसत।

Editing by Anant Kamath — थोड़ा टाइट होता तो फिल्म शायद ज्यादा असरदार लगती।

 

 

 क्यों नहीं जमी ये फिल्म?

1. धीमा स्क्रीनप्ले: शुरुआत से ही फिल्म की रफ्तार बहुत स्लो है। जैसे कोई पुरानी सरकारी ट्रेन जो हर स्टेशन पर दस-दस मिनट रुकती हो।

2. रिपिटेटिव सीन: एक ही बात को कई बार दिखाने से पब्लिक का कनेक्शन टूट जाता है।

3. किरदारों की गहराई नहीं है: कुछ किरदार बस स्क्रीन पर आकर चले जाते हैं, उनका कोई असर नहीं होता।

4. इमोशनल कनेक्ट नहीं बन पाया: इतने बड़े मुद्दे पर फिल्म बनाना एक बात है, लेकिन दर्शक को उसमें डूबो देना अलग बात है।

 

 

Box Office और Release Update

“Jitraab” को रिलीज़ किया गया है 8 अगस्त 2025 को, मुंबई के PVR Odeon Ghatkopar में (जहाँ दिन में एक ही शो चलता है), और कुछ और सिनेमाघरों में।

Publicity और Opening — भाई साहब, बहुत ही कमजोर। इतना कि कई लोगों को तो इस फिल्म के बारे में पता भी नहीं चला।

 

 क्या देखें या ना देखें? मेरी राय…

अगर आप उन लोगों में से हैं जो सोचते हैं कि सिनेमा सिर्फ मसाला, डांस और फाइट नहीं होना चाहिए — और अगर आप पेशेंस के लेवल पर थलाइवा हैं — तो देख सकते हो।

लेकिन अगर आप टाइमपास, एंटरटेनमेंट या स्ट्रॉन्ग इमोशन की तलाश में हो, तो “जित्राब” आपको निराश कर सकती है।

 

मेरे नजरिए से

यार, मैं खुद एक गांव से आता हूं और गायों से जुड़ी समस्याएं देखी हैं। मेरी दादी आज भी गाय को भगवान का रूप मानती हैं। लेकिन इस फिल्म को देखने के बाद लगा कि सिर्फ विषय चुन लेना काफी नहीं है — उसे जिस तरह से पेश किया जाता है, वो ज्यादा जरूरी है।

“जित्राब” एक missed opportunity है — एक ऐसा मौका जिसे सही तरीके से पेश किया जाता, तो ये फिल्म दिलों में उतर जाती।

 

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