Dr. Hedgewar Review! डॉ. हेडगेवार फिल्म का हिंदी रिव्हीव
“डॉ. हेडगेवार” – एक बायोपिक, लेकिन बस ठीक-ठाक!
दोस्तों, पिछले हफ्ते बॉम्बे में रिलीज़ हुई Akshay Shetty Production की “Dr. Hedgewar” एक ऐसी बायोपिक है जो भारत के एक बड़े राष्ट्रवादी नेता के जीवन पर आधारित है। यह वही डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार हैं, जिन्हें छत्रपति शिवाजी महाराज के विचारों और वीरता से गहरी प्रेरणा मिली थी। फ़िल्म में दिखाया गया है कि कैसे उन्होंने पारंपरिक राजनीति से मोहभंग होने के बाद अपनी जिंदगी का असली मकसद खोजा — मेडिकल करियर को छोड़कर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) की स्थापना करना और पूरे देश में हिंदुत्व का संदेश फैलाना।
कहानी और स्क्रीनप्ले
कहानी लिखी है विद्यासागर अध्यापक, मकरंद सावंत और राजेंद्र तिवारी ने। यह असल ज़िंदगी के किरदारों और घटनाओं पर आधारित है, तो उम्मीद थी कि इसमें गहराई और इमोशनल इम्पैक्ट दोनों मिलेंगे। लेकिन, सच बोलूं तो कहानी उतनी यूनिवर्सल अपील वाली नहीं है। हाँ, स्क्रीनप्ले (विद्यासागर अध्यापक, मकरंद सावंत, राजेंद्र तिवारी और राधास्वामी अवुला) में कुछ दिलचस्प पल हैं और यह एक हद तक एंगेजिंग भी है — लेकिन सिर्फ़ एक लिमिटेड ऑडियंस के लिए। मतलब अगर आप पहले से इस विषय में रुचि रखते हैं, तो आपको कनेक्ट होगा, वरना शायद उतना असर न छोड़े।
डायलॉग्स, जिन्हें विद्यासागर अध्यापक, मकरंद सावंत और राजेंद्र तिवारी ने लिखा है, बस “ठीक-ठाक” हैं। कहीं-कहीं जोरदार लगते हैं, लेकिन कई जगह बस स्क्रिप्ट पूरी करने जैसे लगते हैं।
एक्टिंग परफॉर्मेंस
अब एक्टर्स की बात करते हैं, क्योंकि यार, एक बायोपिक का आधा असर तो कास्टिंग और परफॉर्मेंस पर ही निर्भर करता है।
जयनन्द शेट्टी ने बूढ़े हेडगेवार का रोल किया है और काम अच्छा है — चेहरों के हावभाव और डायलॉग डिलीवरी, दोनों पर मेहनत दिखती है।
हरीश गवई युवा हेडगेवार के रूप में काफ़ी अच्छा काम करते हैं। उनकी स्क्रीन प्रेज़ेन्स दमदार है, और इमोशनल सीन में असर छोड़ते हैं।
मास्टर तेजस बतौर चाइल्ड हेडगेवार बस ठीक हैं — ज्यादा स्क्रीन टाइम नहीं, लेकिन जो है, उसमें प्यारे लगते हैं।
सनी मंडवार्रा ने लोकमान्य तिलक का रोल निभाया और यह काफ़ी अच्छा रहा।
संदीप भोजक बतौर वीर सावरकर ठीक हैं, लेकिन थोड़ी और इंटेंसिटी हो सकती थी।
मुकुंद वसुले ने महात्मा गांधी का रोल निभाया और ईमानदारी से किया है।
आशा सिंह देवासी (कस्तूरबा गांधी) का काम भी ठीक है।
स्वप्निल भोँगडे बतौर पंडित नेहरू छोटा रोल होते हुए भी नोटिस हो जाते हैं।
बाक़ी सपोर्टिंग कास्ट में मिलिंद दस्ताने (डॉ. मुंजे) और अन्य ने ज़रूरी सपोर्ट दिया।
और हाँ, मनोज जोशी की नैरेशन (narration) सटीक है — न ज्यादा लंबी, न बोरिंग।
डायरेक्शन और टेक्निकल पार्ट
राधास्वामी अवुला का डायरेक्शन मुझे बस एवरेज लगा। कहानी में पोटेंशियल था, लेकिन ट्रीटमेंट थोड़ा डॉक्यूमेंट्री-स्टाइल में चला गया, जिससे सिनेमाई मज़ा कम हो गया।
डॉ. संजयराज गौरीनंदन का म्यूज़िक – बस “चलता है” कैटेगरी में आता है। गाने याद रह जाने वाले नहीं हैं, लेकिन लिरिक्स (सोरभ भारत, अंकित खत्री, नादन विनोद शर्मा वात्स, राजेश बामगुडे और अरुण संगोले) अच्छे हैं।
तपन ज्योति दत्ता का बैकग्राउंड म्यूज़िक फंक्शनल है — मतलब सीन के साथ फिट बैठता है लेकिन वॉव फैक्टर नहीं लाता।
महेश दत्तात्रय दिग्राजकर और अनीकेत खंडागले की सिनेमैटोग्राफी अच्छी है — कुछ लोकेशन शॉट्स खासकर खूबसूरत निकले हैं।
आर्ट डायरेक्शन (इमरान अली, मंदर जगन्नाथ खुम्भर, आतिश बाबन खारट और गीतांजलि आनंद) भी डीसेंट है।
हाँ, एडिटिंग (महेश भाऊसाहेब पाखरे और जितेंद्रिया कुमार परिदा) थोड़ी टाइट होती तो फिल्म और क्रिस्प लगती।
कुल मिलाकर
“Dr. Hedgewar” एक डिसेंट लेकिन खास नहीं वाली बायोपिक है। अगर आप RSS, राष्ट्रवाद और इतिहास में गहरी रुचि रखते हैं तो यह फिल्म आपको पसंद आ सकती है। वरना यह आपको उतना प्रभावित नहीं करेगी जितना एक पावरफुल बायोपिक को करना चाहिए।
मेरे हिसाब से यह फिल्म 2.5/5 स्टार की हकदार है।
मेरी सोच
सच बोलूं तो, मुझे उम्मीद थी कि इतनी बड़ी पर्सनालिटी की बायोपिक में इमोशन्स, ड्रामा और इंस्पिरेशन का कॉम्बो देखने को मिलेगा। लेकिन यहाँ ट्रीटमेंट ज्यादा से ज्यादा “इंफॉर्मेशनल” रहा। कुछ सीन दिल को छूते हैं, लेकिन उतनी बार नहीं जितनी बार ज़रूरी था।
ऐसा लगा जैसे डायरेक्टर ने सेफ गेम खेला है, जबकि बायोपिक में थोड़ी सिनेमैटिक फ्लेवर डालना ज़रूरी होता है।
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