Ghich-pich-review Pich Review! घिच पीच फिल्म का हिंदी रेव्हिव
Ghich Pich Movie Review — बाप-बेटे की कहानी, लेकिन टच मिसिंग है!
भाई लोग, आज बात करते हैं एक नई फिल्म की — “Ghich Pich”। नाम सुनके लगा था कुछ मजेदार और हटके मिलेगा, लेकिन फिल्म देखने के बाद लगा कि “घिच-पिच” सिर्फ टाइटल में है, कंटेंट में नहीं।
इस फिल्म को बनाया है Barsaati Films ने और रिलीज़ किया गया है 8 अगस्त 2025 को। मैंने तो पहली ही शो में पकड़ ली, ताकि आप लोग सोच-समझकर पैसे खर्च करो। अब आइए बात करते हैं इस फिल्म की अच्छे से “घिच-पिच” करते हुए।
कहानी क्या है?
ये कहानी है मिडिल क्लास फैमिलीज़ की, खासकर उन डैड्स की जो अपने बेटों को अपनी तरह बनाना चाहते हैं, और बेटों की जो अपने ड्रीम्स के पीछे भागना चाहते हैं।
यहाँ दो फैमिलीज़ की कहानी चलती है — एक तरफ राकेश अरोड़ा (Nitesh Pandey) हैं और दूसरी तरफ नरेश बंसल (Satyajit Sharma)। दोनों अपने बेटों के डिसीजन से परेशान हैं। बेटे कॉलेज जा रहे हैं, अपने मन की सुन रहे हैं, सोशल मीडिया का ज़माना है, और डैड्स को लग रहा है कि ज़माना हाथ से निकल रहा है।
अब ऐसे में टकराव होना तो लाजमी है। लेकिन इस टकराव को फिल्म जिस तरह से दिखाती है, वो इतना नया नहीं लगता।
स्क्रिप्ट कैसी है?
Ankur Singla की कहानी से ज़्यादा उम्मीद नहीं थी, लेकिन फिर भी कुछ नया देखने की आस थी। पर अफसोस, ये वही पुराना बाप-बेटे का घिसा-पिटा कॉन्फ्लिक्ट है, जो पहले भी कई फिल्मों में देखा जा चुका है — फर्क बस इतना है कि यहाँ ये मेन प्लॉट बन गया है।
Screenplay लिखा है Ankush Singla और Karmaditya Bagga ने, जो काफी सिंपल है और predictable भी। एक सीन देखते ही समझ में आ जाता है कि अगला क्या होने वाला है। और यही कारण है कि फिल्म engage नहीं कर पाती।
Dialogues थोड़े अच्छे हैं। कुछ जगहों पर बातें दिल से निकली सी लगती हैं, जो थोड़ा कनेक्ट करवाती हैं।
एक्टिंग डिपार्टमेंट कैसा रहा?
Nitesh Pandey ने डैड के रोल में अच्छा काम किया है। उनकी परफॉर्मेंस नैचुरल लगी।
Satyajit Sharma ने भी अपने रोल में जान डाली है।
Geeta Agrawal Sharma (Ritu Arora) ने बहुत ही बेहतरीन काम किया है। उनका इमोशनल कंट्रोल और माँ वाला टच काफी रियल लगा।
Shivam Kakar (Gaurav Arora) और Aryan Singh Rana (Anurag Bansal) ने अच्छा निभाया, यूथ एंगल ठीक लगा।
बाकी सपोर्टिंग एक्टर्स जैसे Kabir Nanda, Sarthak Khurana, Shalini Sharma, Lilly Singh वगैरह ने भी अपना काम ठीक-ठाक निभाया है।
Navroop Kaur और Mia Magar जैसे किरदार थोड़े कमजोर लगे।
कुछ एक्टर्स ऐसे लगे जैसे बस स्क्रिप्ट पढ़कर आए हों — कैमरे के सामने तो थे लेकिन दिल से नहीं।
डायरेक्शन और टेक्निकल चीज़ें
Ankur Singla का डायरेक्शन बहुत ही सिंपल रहा। उन्होंने कोई नया एंगल देने की कोशिश नहीं की, जो कि शायद फिल्म को ज़रूरत थी। जब बाप-बेटे की कहानी हजार बार परदे पर दिख चुकी है, तो उसमें कुछ अलग करने की जिम्मेदारी डायरेक्टर की होती है।
Music दिया है Ritwik De ने — जो सीधा-सादा है, ना कोई गाना याद रहता है, ना कोई ट्यून पकड़ में आती है।
Lyrics by Shellee भी वैसे ही फंक्शनल हैं — ना दिल को छूते हैं, ना दिमाग में रहते हैं।
Background Score — honestly कहूं तो ऐसा लगा जैसे किसी YouTube वीडियो से उठा लिया गया हो।
Cinematography by Sukhan Saar Singh — औसत रहा। फ्रेमिंग और एंगल्स ठीक हैं, पर कुछ खास नहीं।
Production Design और Editing — दोनों ही डिपार्टमेंट में औसत काम दिखा।
बॉक्स ऑफिस रिपोर्ट
फिल्म रिलीज़ हुई PVR Lower Parel और कुछ और थिएटर्स में एक शो के साथ।
Publicity बहुत कमजोर रही, शायद इसी वजह से ओपनिंग भी फ्लॉप निकली।
पूरे इंडिया में रिलीज़ हुई, लेकिन कहीं भी भीड़ नहीं दिखी। ओपनिंग वीकेंड में ही ये फिल्म non-starter बन गई।
क्या प्रॉब्लम रही इस फिल्म में?
टॉपिक पुराना था, और उसे ताजगी से नहीं दिखाया गया।
कैरेक्टर बिल्डिंग कमजोर थी — खासकर यंग जनरेशन के किरदारों की।
इमोशनल कनेक्ट बन नहीं पाया — ना बाप की परेशानी दिल तक पहुंची, ना बेटे का दर्द।
कोई मेमरेबल सीन नहीं — वो वाला सीन जो फिल्म खत्म होने के बाद भी दिमाग में घूमता रहे… ऐसा कुछ भी नहीं था।
मेरी राय — देखनी चाहिए या स्किप?
अगर आप फैमिली ड्रामा देखने के शौकीन हो, और सिर्फ टाइम पास करना है, तो एक बार देख सकते हो। लेकिन honestly कहूँ तो “Ghich Pich” जैसी फिल्में अब ओटीटी पर भी बहुत हैं, और उनसे ज्यादा मज़ेदार होती हैं।
तो मेरी सलाह — थिएटर जाने की जरूरत नहीं है, घर पर बैठकर कोई पुरानी बेहतर फैमिली फिल्म देखो। “Baghban” या “Piku” जैसी फिल्मों की पुरानी यादें ताज़ा कर लो।
मेरे नजरिए से
हम यंगस्टर्स हर चीज़ में नया, हटके और थोड़ा स्मार्ट कंटेंट ढूंढते हैं। और इस मामले में “Ghich Pich” मिस हो जाती है। फिल्म की स्क्रिप्ट और ट्रीटमेंट बहुत ही 2000 के जमाने जैसा लगता है।
आज जब ओटीटी और सोशल मीडिया पर इतने टैलेंटेड स्टोरीटेलर्स हैं, तो इस तरह की हल्की कोशिश बस समय और पैसा दोनों की बर्बादी लगती है।
चलते-चलते — मेरे प्यारे पाठकों से एक छोटी-सी रिक्वेस्ट
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तो अगली फिल्म तक, मैं कहता हूँ अलविदा।
Stay Filmy, Stay Real, और घिच-पिच से थोड़ा दूर रहो