Kaalidhar Lapata Film Review : कालिधर लापता फिल्म का रिव्हीव
🧠🎥 Kaalidhar Laapata Review: एक भूला-बिसरा किरदार, एक बेमन की कहानी – OTT पर आई एक और मिसिंग स्टोरी!
भाइयों और बहनों, आज हम बात कर रहे हैं Zee5 पर रिलीज़ हुई एक नयी फिल्म की – “Kaalidhar Laapata”. नाम से तो लगा था कि शायद कुछ हटके देखने को मिलेगा – dementia से जूझता एक आदमी, फैमिली ड्रामा, इमोशन्स और ढेर सारी रियल लाइफ वाइब्स।
लेकिन जैसे ही फिल्म खत्म हुई, दिल से एक ही बात निकली – “यार, अच्छा ट्रेलर देखकर फँस गए!”
🎬 कहानी की शुरुआत – भावुकता या बहाना?
Kaalidhar (Abhishek Bachchan) 40 साल का कुंवारा है और उसे early onset dementia हो गया है। मतलब उसे चीज़ें भूलने की बीमारी है, और वो दिन-ब-दिन और भुलक्कड़ होता जा रहा है।
अब सुनो ट्विस्ट – उसके घरवाले, यानि दो छोटे भाई Manohar (Vishwanath Chatterjee) और Sundar (Priyank Tiwari) और भाभी Neetu (Madhulika Jatoliya) बस इसी फिराक में हैं कि कब Kaalidhar मरे और कब वो घर बेचकर लोन चुका लें।
और इसके लिए ये लोग क्या करते हैं? जी हाँ, Kaalidhar को Kumbh Mela में ले जाकर वहाँ छोड़ आते हैं, ताकि वो रास्ता भटक जाए और वापस ना आए।
लेकिन फिल्म में थोड़ी इंसानियत बची है – Kaalidhar को इनका प्लान पता चल जाता है और वो खुद ही वहाँ से Bhojpur भाग जाता है।
अब कहानी बनती है एक “missing person” की और उसका connection बनता है एक 10 साल के प्यारे से बच्चे Ballu (Daivik Baghela) से।
इधर परिवार वाले दिखावे के लिए उसकी तलाश शुरू करते हैं, लेकिन असली वजह कुछ और होती है।
🤔 स्क्रिप्ट में क्या खो गया?
फिल्म की कहानी लिखी है Madhumita ने, और उन्होंने एक ऐसी स्टोरी लाई है जो काफी predictable है। यानि, आपको पहले 30 मिनट में ही पता चल जाएगा कि आखिरी में क्या होने वाला है।
और सबसे मज़े की बात? ये फिल्म बहुत हद तक एक पुरानी फ्लॉप फिल्म “Vanvaas” जैसी लगती है। वही एबंडनमेंट, वही वापसी, वही emotional manipulation।
Screenplay भी Madhumita और Amitosh Nagpal ने मिलकर लिखा है, पर इसमें originality कम और clichés ज़्यादा हैं। इमोशन्स बिलकुल भी असर नहीं करते, सीन देखकर लगता है कि कुछ मिसिंग है — शायद दिल से लिखा गया डायलॉग।
बस हाँ, एक जगह थोड़ा emotional connect बनता है – Ballu और Kaalidhar की बॉन्डिंग में। वो scenes थोड़े honest लगे।
🎭 एक्टिंग – थोड़ी soulful, थोड़ी dull
Abhishek Bachchan ने honestly अच्छा काम किया है। एक dementia patient का रोल करना आसान नहीं होता, लेकिन उन्होंने कोशिश की है अपने पूरे मन से।
Daivik Baghela (Ballu) – यार ये बच्चा दिल जीत लेता है। Innocence, bonding, और comic timing भी बढ़िया है।
Mohammed Zeeshan Ayyub (Subodh) – इस बंदे का स्क्रीन टाइम कम है लेकिन presence solid है।
Vishwanath Chatterjee (Manohar) – natural लगते हैं, अच्छा किया।
Madhulika Jatoliya (Neetu) – एकदम average।
Priyank Tiwari (Sundar) – इतना so-so कि याद भी नहीं रहता।
Nimrat Kaur (Meera) – एकदम forced appearance, ऐसा लगा जैसे producers बोले हों, “चलो एक एक्स-गर्लफ्रेंड भी डाल देते हैं।”
बाकी सारे characters बस support में हैं – कोई खास याद नहीं रहता।
🎼 म्यूज़िक और डायरेक्शन – ना रुलाता, ना गुनगुनाने लायक
डायरेक्शन Madhumita ने किया है, लेकिन honestly बोलूँ तो direction इतना flat है कि scenes में कोई uplift नहीं आता।
Amit Trivedi का म्यूज़िक है, और भाई normally हम उम्मीद करते हैं कि Trivedi मतलब soulful magic! लेकिन यहाँ ऐसा कुछ नहींलेकिन यहाँ ऐसा कुछ नहीं है। एक भी गाना ऐसा नहीं कि आप Spotify में ढूंढने बैठ जाएं।
हाँ, Geeta Sagar के lyrics कुछ जगह अच्छे हैं, थोड़े मतलब वाले हैं।
Background Score (Tajdar Junaid) – कमज़ोर है, कई emotional scenes को और flat बना देता है।
Cinematography (Gairik Sarkar) – ठीक है, Bhojpur के लोकेशन्स कुछ-कुछ जगह अच्छे लगे।
Choreography, Art, Editing – सब कुछ बस काम चलाऊ।
💭 क्या है फिल्म का असली मैसेज?
फिल्म एक important subject टच करती है – mental illness, abandonment और emotional neglect। पर ये सारी बातें सिर्फ कागज़ पर अच्छी लगती हैं। Screen पर ये उतना असर नहीं करतीं।
Kaalidhar का Bhojpur भागना, फिर Ballu के साथ bonding, और फिर अचानक से Ballu का climax में गायब हो जाना – ये सब अधूरी कहानी जैसा लगता है।
और रही बात Kaalidhar की वापसी की, तो जब वो घर लौटता है, तब भी ना कोई बड़ा emotional high आता है, ना catharsis।
📉 Final Verdict – OTT पर मिस करने लायक फिल्म
अगर ये फिल्म cinema halls में आती, तो शायद 2 दिन में उतार दी जाती। OTT पर है, तो एक बार curiosity में देख सकते हो – बस ज्यादा उम्मीद मत रखना।
⭐ मेरी रेटिंग: 2 / 5
बातें अच्छी थीं – mental health awareness, फैमिली ड्रामा और एक innocent बॉन्डिंग – पर execution इतना ठंडा था कि इमोशन्स आपको छू तक नहीं पाते।
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