McGuffin Review Hindi! McGuffin फिल्म का हिंदी रिव्हीव
McGuffin Movie Review — इतना कन्फ्यूज़ कि दिमाग का McGuffin उड़ गया!
भाई, आज मैं आपको बताने वाला हूँ एक ऐसी फिल्म के बारे में जिसे देखकर मेरे दिमाग ने मुझसे पूछा — “भाई, ये क्या था?”
फिल्म का नाम है McGuffin, और इसे बनाया है Roar Picture Company ने। रिलीज़ हुई 8 अगस्त 2025 को, और मुझे तो लगता है कि पहले दिन के बाद ही थिएटर वालों ने पॉपकॉर्न बेचने में ज़्यादा दिलचस्पी दिखाई होगी, फिल्म में नहीं।
कहानी — McGuffin आखिर है क्या?
तो भाई, ये कहानी है एक प्राइवेट डिटेक्टिव अंजान (Rohit Arora) की, जो एक केस सॉल्व करने में इतना खो जाता है कि खुद को ही खोने लगता है। केस का टारगेट है — McGuffin को ढूंढना।
अब, McGuffin क्या है? कोई इंसान, कोई चीज़, या बस एक बहाना? फिल्म देख लो तो भी जवाब क्लियर नहीं मिलेगा। और यही सबसे बड़ी प्रॉब्लम है — कन्फ्यूज़न का ओवरडोज़।
स्क्रिप्ट और स्क्रीनप्ले — “Abstract” का मतलब बोरिंग नहीं होता!
Rohit Arora ने इस फिल्म को लिखा और डायरेक्ट किया है। कहानी को उन्होंने इतना abstract बना दिया कि दर्शक शुरू के 15-20 मिनट में ही सोचने लगते हैं — “चलो यार, चाय पीकर आते हैं, कुछ मिस हो भी गया तो फर्क नहीं पड़ेगा।”
स्क्रीनप्ले में पकड़ ही नहीं है। सीन्स आपस में कनेक्ट होते हैं, लेकिन वो कनेक्शन इतना ढीला है कि इमोशनल इन्वेस्टमेंट ज़ीरो हो जाता है।
डायलॉग्स भी बस औसत हैं — ना कोई पंच, ना कोई ऐसा लाइन जो निकलने के बाद भी याद रह जाए।
एक्टिंग — सब बस “पास मार्क्स” तक
Rohit Arora खुद ही हीरो हैं, लेकिन अंजान के रोल में उनका इम्पैक्ट फीका है।
Kajal Himalayan (दासी) ठीक-ठाक लगीं, कुछ सीन में अच्छा किया।
Sidharth Bhardwaj (WoWei) बस पास हो गए, न बहुत अच्छे, न बहुत बुरे।
Nasir Abdullah (प्रो. सिन्हा) ने थोड़ा सपोर्ट दिया, लेकिन रोल छोटा था।
Lokesh Mittal (कर्मा) और बाकी सभी एक्टर्स — औसत परफॉर्मेंस।
सीधे शब्दों में कहूँ तो, एक्टिंग में वो जान ही नहीं थी जो एक थ्रिलर-टाइप फिल्म में होनी चाहिए।
डायरेक्शन, म्यूज़िक और टेक्निकल्स
डायरेक्शन: Rohit Arora ने डायरेक्टर की कुर्सी संभाली, लेकिन फिल्म को संभाल नहीं पाए। कई सीन ऐसे लगे जैसे बस कैमरा ऑन करके एक्टर्स को छोड़ दिया गया हो।
Editing: खुद डायरेक्टर ने की, और यही सबसे बड़ा नुकसान रहा। फिल्म इतनी स्लो है कि घड़ी देख-देखकर टाइम पास करना पड़ा।
Music: Rishi Kumar का म्यूज़िक तो जैसे फिल्म के साथ-साथ गुम हो गया। कोई भी गाना याद नहीं रहता।
Background Score: Anand Nambiar का बैकग्राउंड म्यूज़िक फंक्शनल है, मतलब बस काम चला देता है।
Cinematography: Surendra Panwar ने औसत काम किया है, कुछ लोकेशंस अच्छे लगे लेकिन शॉट्स में कोई क्रिएटिविटी नहीं।
पब्लिक रिस्पॉन्स और बॉक्स ऑफिस
फिल्म रिलीज़ हुई Movie Time Goregaon और एक-दो और थिएटर्स में।
पब्लिसिटी इतनी कमजोर थी कि 90% लोगों को पता ही नहीं चला कि कोई McGuffin नाम की फिल्म आई है।
जहाँ रिलीज़ हुई, वहाँ भी ओपनिंग इतनी कमजोर कि शो कैंसिल होने की नौबत आ गई।
क्यों नहीं चली ये फिल्म?
1. कहानी में पकड़ नहीं — थ्रिलर को कन्फ्यूज़िंग बनाना ठीक है, लेकिन इतना भी नहीं कि ऑडियंस कनेक्ट ही न कर पाए।
2. धीमा स्क्रीनप्ले — हर सीन में खिंचाई, कोई टेंशन बिल्ड-अप नहीं।
3. नो स्टार पावर — कोई ऐसा चेहरा नहीं जो पब्लिक खींच सके।
4. कमज़ोर मार्केटिंग — किसी को पता ही नहीं चला फिल्म कब आकर चली भी गई।
मेरी राय — देखनी चाहिए या नहीं?
अगर आप फिल्मों में एक्सपेरिमेंट पसंद करते हैं और आपके पास बहुत धैर्य है, तो एक बार ओटीटी पर देख सकते हैं। लेकिन थिएटर में पैसा खर्च करना? बिलकुल नहीं!
इस तरह की फिल्म के लिए बोलते हैं — “ये पिक्चर नहीं, एक लंबा म्यूजिक वीडियो था जिसमें म्यूजिक भी खास नहीं था।”
मेरे नज़रिए से
हमारी जनरेशन को थ्रिलर चाहिए तो हम Sacred Games, Mirzapur या Drishyam देख लेते हैं — जहाँ सस्पेंस भी हो, इमोशन भी, और एंटरटेनमेंट भी।
“McGuffin” में न वो मिस्ट्री है, न ड्रामा, और न वो दम जो हमें स्क्रीन से बांधे रखे।
फिल्म ने मुझे एक चीज़ सिखाई — abstract और confusing में फर्क होता है, और अगर बैलेंस बिगड़ गया तो रिज़ल्ट यही होता है।
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तो अगली फिल्म तक, मैं कहता हूँ — Stay Filmy, Stay Curious!