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Zora Review Hindi! झोरा फिल्म का हिंदी रेव्हिव 

Zora Zora Review Hindi! झोरा फिल्म का हिंदी रेव्हिव 

 

फिल्म रिव्यू: ZORA – थ्रिलर तो बोला था, पर थ्रिल कहां है यार?

 

 

भाई लोग, जब कोई फिल्म का ट्रेलर देख के लगे कि कुछ बड़ा धमाका होने वाला है, और फिर थिएटर से बाहर निकलते टाइम दिल बोले – “इतना सन्नाटा क्यों है भाई?” – तो समझो वो फिल्म थी ZORA.

Trimurti Films Pvt. Ltd. की ये फिल्म खुद को whodunit यानी किसने मारा टाइप मर्डर मिस्ट्री बोलती है, लेकिन देख कर ऐसा लगता है कि मर्डर मिस्ट्री के नाम पर हमारा टाइम ही मार दिया गया ।

कहानी – स्टार्ट तो झकास, लेकिन फिर…

रणजीत सिंह (रविंदर कुहर) एक सब-इंस्पेक्टर है, लेकिन उसके दिल में बाप का दर्द है। बाप जो एक इज्ज़तदार पुलिसवाला था, उसकी मौत को आत्महत्या दिखा दिया गया… और ऊपर से उसके सारे मेडल, इज़्ज़त सब छीना गया। रणजीत को यकीन है कि उसके बाप ने सुसाइड नहीं किया था, बल्कि उसे मारा गया था – और कातिल है ZORA।

लेकिन दिक्कत ये है कि Zora अब कहीं मिलती ही नहीं। कई सालों बाद रणजीत पुलिस में होते हुए इस रहस्य को सुलझाने की ठानता है।

कहानी सुनने में अच्छी लग रही है ना? बस सुनने में ही अच्छी है। असल में फिल्म इतना स्लो और बोरिंग हो जाता है कि थ्रिल की जगह नींद आने लगती है।

 

स्क्रीनप्ले और डायरेक्शन – पुरानी किताब का पन्ना

राजीव राय ने खुद ही स्टोरी और स्क्रीनप्ले लिखा है। स्क्रीनप्ले फास्ट है, कट-टू-कट चलता है, लेकिन भाई – इसमें वो ‘engagement’ गायब है जो मर्डर मिस्ट्री में होना चाहिए।

मतलब, जो असली मजा होता है – अपने दिमाग में थ्योरी बनाना, ‘killer कौन है?’ सोचते रहना – वो पूरी तरह मिसिंग है। दर्शक को कोई involvement ही नहीं लगता।

ऊपर से, फिल्म में इतने सारे किरदार हैं – और उनमें से आधे से ज़्यादा बिल्कुल नए या अनजान चेहरे। जिससे कन्फ्यूज़न और बढ़ जाता है – कौन कौन था, कौन क्या कर रहा था – सब मिक्स।

सस्पेंस का क्या हुआ?

भाई, जब आप एक whodunit देख रहे हो, तो क्लाइमेक्स सबसे ज़रूरी होता है। लेकिन ZORA का क्लाइमेक्स ऐसा निकला जैसे – “अरे यार ये था क्या? बस इतना ही?”

जो Zora की पहचान सामने आती है, वो बिल्कुल ठंडी और बिना कोई थ्रिल के होती है। ना कोई टेंशन, ना कोई टर्निंग पॉइंट – एकदम ‘meh’ टाइप।

 

एक्टिंग डिपार्टमेंट – जैसे सबको जबरदस्ती लाया गया हो

रविंदर कुहर (रणजीत सिंह) – भाई की डेब्यू फिल्म है, लेकिन डायलॉग डिलीवरी और एक्सप्रेशन दोनों में जान नहीं दिखी।

करण वीर (इकबाल) – बस ठीक ठाक। याद रखने लायक नहीं।

निखिल देववन (कमल नाथ) और बाकी सारे किरदार – किसी ने भी ऐसा काम नहीं किया कि दिल में जगह बना सके।

पूरी फिल्म में सिर्फ लीना शर्मा (डॉ. वंदना) थोड़ी बहुत ठीक लगीं। बाकी सब या तो ओवरएक्टिंग कर रहे थे, या कैमरे के सामने नर्वस।

टेक्निकल चीजें – कुछ काम चलाऊ, कुछ अच्छा

म्यूज़िक – विजू शाह का म्यूजिक बस ठीक-ठाक है। कोई गाना ऐसा नहीं जो थिएटर से निकलते वक़्त भी याद रह जाए।

लिरिक्स (राशिद रंगरेज़) – कोई खास दम नहीं। बस कहानी के हिसाब से हैं।

कोरियोग्राफी (लॉन्गिनस) – surprisingly अच्छी लगी। गानों में मूव्स सही थे।

कैमरा वर्क और एडिटिंग – ललित साहू का कैमरा वर्क ठीक है, और राजीव राय की एडिटिंग शार्प है, लेकिन वो शार्पनेस भी कुछ नया करने में असफल रही।

एक्शन – किंदर डब्ल्यू सिंह की एक्शन सीन्स देखने में थ्रिल कम, स्क्रिप्टेड ज़्यादा लगे।

 

 

डायरेक्शन – टेक्निकली साउंड, लेकिन आज की जनरेशन से कटा हुआ

राजीव राय पुराने ज़माने के बड़े डायरेक्टर रह चुके हैं। लेकिन इस फिल्म को देखकर लगता है कि उन्होंने 90s के ढांचे में आज की कहानी डालने की कोशिश की है – और यही सबसे बड़ी गलती बन गई।

आज की ऑडियंस फास्ट, स्मार्ट और डीप थ्रिल चाहती है – और ZORA में वो सब गायब है।

रिलीज़ और रिस्पॉन्स – Public Reaction: Meh!

8 अगस्त 2025 को फिल्म रिलीज़ हुई थी मराठा मंदिर और बाकी बॉम्बे के सिनेमाज में – लेकिन भाई, पहला शो ही इतना ठंडा था कि बाकी का अंदाज़ा खुद लगा लो।

ऑपनिंग थी सुस्त, और रिव्यूज़ भी हुए धड़ाम!

 

Final Verdict – ZORA: नाम भारी, फिल्म खाली

एक लाइन में बोलूं तो – ZORA एक ऐसी मर्डर मिस्ट्री है जिसमें ना मर्डर का झटका है, ना मिस्ट्री का मजा।
पुरानी स्क्रिप्ट, कमजोर एक्टिंग और बेस्वाद थ्रिल – सबने मिलकर फिल्म को डुबो दिया।

अगर टाइम और पैसे बचाने हैं, तो ये फिल्म थियेटर में ना ही देखें तो बेहतर है। यूट्यूब पर किसी पुरानी मर्डर मिस्ट्री को दोबारा देख लो – मज़ा ज्यादा आएगा।

 

 हमारी रेटिंग – 1.5 / 5 ⭐

 “Zora ने रहस्य से ज़्यादा दर्शकों की उम्मीदों को मार डाला।”

 

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