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Sundarnagar Ki Sundari Film Review! सुंदरनगर कि सुंदरी फिल्म रिव्हीव 

Sundarnagar ki Sundari Ki Sundari Film Review! सुंदरनगर कि सुंदरी फिल्म रिव्हीव 

 

 सुंदरनगर की सुंदरी –  रिव्यू 

दोस्तों, आज हम बात करने वाले हैं हाल ही में रिलीज़ हुई कॉमेडी फिल्म “सुंदरनगर की सुंदरी” के बारे में। नाम सुनकर तो लगा था कि भाईसाहब कोई ज़बरदस्त कॉमेडी होगी, हंसी से पेट दुख जाएगा, लेकिन फिल्म देखकर सच्चाई कुछ और ही निकली।

कहानी – शादी का घर लेकिन मज़ा नहीं

फिल्म की कहानी घूमती है एक शादी के इर्द-गिर्द। दो पड़ोसी परिवार आपस में रिश्तेदारी कर रहे हैं। सब तरफ़ शहनाई, ढोल-नगाड़े, शादी की धूम होनी चाहिए थी। लेकिन असली ड्रामा तब शुरू होता है जब दूल्हे की बहन, जो खुद को आने वाली बॉलीवुड हीरोइन समझती है, हर जगह स्पॉटलाइट खींचने लगती है।

अब सोचो यार, शादी का माहौल हो और कोई एक इंसान लगातार “मैं-मैं” करे तो पूरा मज़ा किरकिरा हो जाता है। यही इस फिल्म में भी होता है। शादी की खुशी वाली वाइब बदलकर एक अजीब-सा ड्रामा बन जाती है।

 

पटकथा और लेखन – कॉमेडी का वादा, हंसी गायब

कहानी और पटकथा लिखी है सचिन गुप्ता ने। आइडिया तो ठीक था, लेकिन लिखावट और प्रस्तुति में मज़ा नहीं आया। कॉमेडी के नाम पर जो परोसा गया, वो हल्की मुस्कान तक ही सीमित रहा।

डायलॉग भी बस ठीक-ठाक हैं। कोई दमदार लाइन नहीं, कोई ऐसा मज़ाक नहीं जिसे सुनकर दोस्त बार-बार दोहराएँ। कुल मिलाकर, फिल्म की रीढ़ यानी कहानी ही कमजोर है।

अभिनय – सब कुछ मशीन जैसा

हिमांशु गोयल – हीरो हैं, पर स्क्रीन पर जान नहीं डाल पाए। चेहरे पर वही एक जैसा भाव।

संस्कृति वर्मा – हीरोइन हैं, पर उनकी एक्टिंग भी फीकी लगी।

अभिषेक चव्हाण, ग्रेसी गोस्वामी, विरती वाघानी और सहस Purswani – सबके रोल औपचारिक लगते हैं। जैसे किसी ने बस कैमरे के सामने खड़े होकर डायलॉग बोल दिए हों।

शादी वाला सेटअप normally मस्त और रंगीन होना चाहिए, लेकिन यहाँ सब कुछ बेरंग लगता है।

 

निर्देशन – कमजोर पकड़

निर्देशन भी कहानी जितना ही ढीला है। सचिन गुप्ता ने फिल्म को इस तरह संभाला कि कहीं भी असली कॉमेडी नहीं निकल पाई। शादी वाले माहौल में रिश्तेदारों की नोक-झोंक, बारात के मज़ेदार पल, डांस और गाने – सब कुछ सिर्फ नाम के लिए दिखा दिया गया।

 

संगीत और तकनीकी पहलू

शिवांग माथुर का संगीत भी कोई कमाल नहीं दिखाता। गाने सुनकर ज़रा भी मज़ा नहीं आता। शादी वाली फिल्म में तो गाने audience को झूमने पर मजबूर कर दें, लेकिन यहाँ ऐसा कुछ भी नहीं है।

एडिटिंग ढीली है, सिनेमैटोग्राफी औसत। कुल मिलाकर तकनीकी पक्ष भी कमजोर रहा।

दर्शकों का अनुभव 

अब अपनी नज़र से बताऊँ। मैं और मेरे दो-तीन दोस्त weekend पर यह फिल्म देखने गए थे। सोचा था धमाल मज़ा आएगा। लेकिन interval तक boredom इतना बढ़ गया कि हम स्नैक्स पर ही ज़्यादा ध्यान देने लगे।

कॉमेडी फिल्म का मज़ा तब आता है जब बाहर निकलकर भी लोग scenes discuss करें – “अरे वो सीन याद है? कितना हंसे थे!” लेकिन यहाँ थिएटर से निकलते ही सबने एक साथ कहा – “यार, अगली बार ऐसी फिल्म देखने की गलती नहीं करेंगे।”

 

क्यों नहीं चली फिल्म?

1. कमज़ोर कहानी – मज़ेदार आइडिया था, पर execution बेकार।

2. फीकी एक्टिंग – किसी ने भी रोल में जान नहीं डाली।

3. ढीला निर्देशन – कॉमेडी की टाइमिंग पूरी तरह मिस।

4. संगीत का फेल होना – शादी वाली फिल्म में भी गाने यादगार नहीं।

 

 

मेरी रेटिंग

 1.5/5 स्टार (वो भी सिर्फ कॉन्सेप्ट और कुछ हल्के-फुल्के सीन्स के लिए)।

अंतिम फ़ैसला

सुंदरनगर की सुंदरी” – नाम बड़ा, काम छोटा। न हंसी, न इमोशन, न अच्छे गाने। अगर आप सोच रहे हैं कि दोस्तों या परिवार के साथ हंसी-ठट्ठे के लिए फिल्म देखें, तो साफ कहूँगा – पैसे बचाइए और कुछ अच्छा कंटेंट ऑनलाइन देख लीजिए।

 

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फ़ाइनल नोट:
सुंदरनगर की सुंदरी – शादी का माहौल था, पर बारात बिना बैंड-बाजा के निकल गई। टोटली अवॉयडेबल!

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